कलम दिल से - Straight from Heart

नकारात्मक उर्जा का एक महान प्रसंग 


सभी सामाजिक बंदू एवं वडीलो को मेरा सागर प्रणाम 

सबसे पहेले मे माफी चाहूँगा की काफ़ी दीनो से कुश खास या धार्मिक जानकारी मेने आपके साथ साजा नही की!

आज हम बात करेंगे नकारात्मक उर्जा के बारे मे!

इस संसार मे केवल दो ही प्रकार के उर्जा के देव होते हे! जिन्मेसे एक सकारात्मक उर्जा के होते हे जिनमे ब्रम्‍हा, विष्णु, इन्द्र, और देवी मे माता सरस्वती, महालक्ष्मी, इत्यादि होते हे जी केवल जनहित के कार्य करते हे! दूसरे वो जो नकारात्मक देव होते हे जो संसार मे संगार का कार्य करते हे जिसमे भैरव, महादेव, महाकाली, आते हे!

नकारात्मक उर्जा अगर हमारे आस पास हद से बड जाए तो मानुयष को काफ़ी नुकसान होता हे! जिसे हम एक काफ़ी प्रचलित प्रसंग के माध्यम से समजने का प्रयत्न करेंगे! 

हम सभी जानते हे की एक बार महाकाली अपना भान भूल गये और इतने क्रोधित हुए की संसार का सायद उस दिन अंत होजाता! पर महाकाल रूपी महादेव ने अपनी एक लीला चलाई और एसे स्थान पर भूमि पर सोए जिसे महाकाली का पेर उनके वक्ष पर पड़ा और पति के अपमान का भान होते ही उनकी जिव्हा बाहर अगाई और वे शांत हुए! इस प्रकार का दृश्‍य दिखती तस्वीर को तो हम सबने देखी होगी पर एसा क्यू हुआ ये भी एक रोचक सवाल हे!

एसा इस लिए हुआ की माता ने युध के अंदर रक्तबीज नाम के राक्ष्क्ष का वध करने हेतु उसके रक्त के साथ उसकी सभी नकारात्मक उर्जा का पान किया था जिसके प्रभाव मे उन्होने अपना भान भूलके इस प्रकार क्रोधित हुए थे की सायद पृथ्वी का अंत कार देते! 

इसी लिए अगर हमारे जीवन को कुशहाल बनाना चाहते हे तो हमे हमेसा नकारात्मक उर्जा से उचित दूरी बनाए रखिनी चाहिए सायद यही शिखाने के लिए भगवान ने ये लीला रची !


हिमांशु पुरोहित - कलाम दिलसे

- अहमदाबाद       

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सदियो से मनुष्य हर वो कर्म करता जिस्से परिणाम उसके मन अनुसार प्राप्त हो फिर भी आने वाले परिणामो से पूरी तरहा से सन्तुस्त नही होता! क्या मनुष्य जो भी कर्म कर रहा हे उसमे कमी हे या और किसी वजे से परिणाम मन अनुसार प्राप्त नही कर पता या फिर यू कहे की किस नियमो पे मनुष्य को चलना चाहिए बताने के लिए हमे ऋषि-मुनियो द्वारा कई शास्त्र  दिए गये हे!नीति शास्त्र भी उसी तरहा प्राप्त एक अनमोल ज्ञान हे! जिसकी सहयता हे मनुष्य अपने जीवन का सर्वांगी विकास कर सकता हे!

                    नीति शात्र मे दिए गये ये सात नीति-नियमो का पालन करना चाहिए! ताकि मनुष्य तरक्की उचाई को पा सके और अपना स्वार्वांगी विकास कर सके! 

1. देवता:
                              लोगों में देवी और देवताओं को लेकर दो तरह की सोच पाई जाती है- आस्तिक और नास्तिक। जो लोग देव भक्ति में विश्वास रखते हैं, उन्हें आस्तिक कहा जाता है और जो भगवान में विश्वार नहीं रखते उन्हें नास्तिक। कई बार हमारा कोई काम या मनोकामना पूरी न होने पर हम भगवान पर विश्वास करना छोड़ देते हैं। उन पर से हमारी आस्था खत्म हो जाती है। जो लोग देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखते हैं, उन्हें अपनी सोच के मुताबिक ही फल मिलता है। आज हमें परेशानियों का सामना क्यों न करना पड़ रहा हो, लेकिन भगवान के प्रति आस्था रखने पर हमें उसका शुभ परिणाम जरूर मिलेगा। इसलिए भगवान के प्रति हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए

2. तीर्थ
                    तीर्थ स्थानों में खुद भगवान का निवास माना जाता है। तीर्थ स्थानों पर लगभग हर समय भक्तों की भीड़ लगी रहती है, जिसकी वजह से वहां कई परेशानियों का सामना भी करना पड़ जाता है। ऐसे में कभी-कभी तीर्थों के प्रति मनुष्य की भावना नकारात्मक हो जाती है। ऐसी भावना के साथ तीर्थ की यात्रा करने पर भी मनुष्य को उसका पुण्य नहीं मिलता है। यदि उस तीर्थ के प्रति मनुष्य की भावना अच्छी न रहे तो पूरे विधि-विधान से तीर्थ-दर्शन करने पर भी उसका फल नहीं मिलता। इसलिए तीर्थों के लिए मन में हमेशा ही अच्छी भावना रखनी चाहिए।

3. ब्राह्मण
                        शास्त्रों में ब्राह्मणों का बहुत महत्व बताया गया है। किसी भी शुभ काम में ब्राह्मणों की पूजा करने और उन्हें दान देने का भी परंपरा है। परंपराओं का पालन तो हर कोई करता है, लेकिन बहुत ही कम लोग इसे पूरा सम्मान और आदर देते हैं। जो मनुष्य ब्राह्मणों पर विश्वास नहीं करता या उनके लिए अच्छी भावना नहीं रखता, उसे कभी भी अपने दान कर्मों का फल नहीं मिलता है। इसलिए मनुष्य को कभी भी श्रेष्ठ और योग्य ब्राह्मणों की योग्यता पर अविश्वास नहीं करना चाहिए।

4. मंत्र
                           मंत्रों को देवी-देवताओं के करीब पहुंचने के एक आसान तरीका माना जाता है। जो लोग रोज शांत मन और पवित्र भावनाओं से भगवान के मंत्रों का जाप करते हैं, उनकी सारी परेशानियों का हल निश्चित ही होता जाता है। जो मनुष्य घर वालों के दबाव में बिना मन से या मंत्रों में अविश्वास की भावना के साथ उनका उच्चारण करता है, उसे इनका साकारात्मक फल नहीं मिलता। इसलिए मंत्रों का पाठ हमेशा विश्वास और आस्था के साथ करना चाहिए।

5. ज्योतिषी
                     ग्रहों की दशाओं को देख कर मनुष्य के कुंडली दोष और समस्याओं के समाधान बताने वाले ज्ञाता व्यक्ति को ज्योतिषी कहा जाता है। कई लोग अपनी परेशानियों का हल पाने के लिए ज्योतिषियों और पंडितों के पास जाते हैं। कई लोग किसी और के कहने पर या ज्योतिषी पर भरोसा न होने पर भी उनके पास चले जाते है। ऐसे में मनुष्य चाहे कितने ही उपाय क्यों न कर ले, लेकिन उसकी परेशानी का हल नहीं निकलता है। मनुष्य जैसी भावना के साथ यह काम करता है, उसी वैसा ही फल मिलता है।

6. चिकित्सक
                        कहते हैं बड़े से बड़े रोग का इलाज किया जा सकता है, जरूरत है तो केवल विश्वास रखने की। औषध यानी चिकित्सक या डाक्टर। कई बार लोगों के कहने पर या किसी भी अन्य कारण से कुछ डाक्टरों या चिकित्सकों को लेकर हमारी सोच नकारात्मक हो जाती है। ऐसे में उस डाक्टर से हम कितना भी इलाज करवा लें लेकिन हमें उसका कोई असर नहीं होता। यदि हमें अपने रोग से छुटकाना पाना है तो अपने चिकित्सक पर विश्वार करें।

7. गुरु
                         जीवन में सफलता पाने के लिए एक श्रेष्ठ गुरु का होना बहुत जरूरी माना गया है। गुरु ही मनुष्य को सही और गलत में फर्क करना और उसकी जिम्मेदारियों का पालन करना सिखाता है। जो व्यक्ति अपने गुरु पर या उसकी दी गई शिक्षा पर विश्वास नहीं रखता, उसे जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अगर पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ गुरु और उसकी शिक्षा का पालन किया जाए तो जीवन में हर सफलता पाई जा सकती है। यदि गुरु की दी गई शिक्षा पर भरोसा न किया जाए तो हमारी सोच के जैसा ही फल भोगना पड़ता है।

               नितिसास्त्र मे बताए हुए नियमो का अर्थ सयाद यही हे की हमारी नकारात्मकता हमारे आने वाले परिणाम को प्रभावित करती हे तो हमे हमेसा कर्म करते वक़्त अपने मनमे सात्विक यानी की हकारात्मक विचारधारा रखनी चाहिए जिससे हमारा परिणाम हमारी इच्च्छा अनुसार आए! हर कर्म करते हुए श्रदा और विश्वश से करने से जीवन मे क्रांति और शांति प्राप्त हो सकती हे!
आसा करता हू इस जानकारी का लाभ आप सभी को प्राप्त हो और हकारात्मक परिणाम प्राप्त हो! 

हिमांशु पुरोहित (बसवाडिया) - कलम दिल से
अहमदाबाद- गुजरात
Dt: 23/08/2015


 इस नवरात्रि को करे मा की आराधना और पाए अपने मनो वांछित फल और करे अपने जीवन का नया सफ़र की सुरुवात






સુંદર પત્ની માટે એક મંત્રઃ-/सुंदर पत्नी के लिए मन्त्र :- ( for wife / biwi ke liye )
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम।।
ગરીબી અને દરિદ્રતાને દૂર કરવા માટેઃ-/ग़रीबी और दुख दूर करने के लिए मन्त्र :- ( for poverty / garibi dur karne ke liye )

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाद्र्रचिता।।

 રક્ષણ માટેઃ-/रख़्शा के लिए मन्त्र :- ( for security / raksha hetu matra ) 

शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च।।
સ્વર્ગની ઇચ્છા અને મુક્તિ મેળવવા માટેઃ-/स्वर्ग के लिए मन्त्र :-

सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्यहदि संस्थिते।
स्वर्गापर्वदे देवि नारायणि नमोस्तु ते।।

મોક્ષની પ્રાપ્તિ માટેઃ-/मोक्ष के लिए मन्त्र :-
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु:।।

સપનામાં સિદ્ધિ કે અસિદ્ધિ જાણવા માટેનો મંત્રઃ-/सपने मे शिधि के लिए मन्त्र :-

दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।

સામૂહિક કલ્યાણ માટેનો મંત્રઃ-/सामूहिक कल्याण के लिए मन्त्र :-


देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्र्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
भकत्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न: ।।

કોઇપણ જાતનો ડર કે ભયને દૂર કરવા માટેનો મંત્રઃ-/डर को भागने के लिए मन्त्र :-

यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो
ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय
नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु।।

કોઇ બીમારી કે રોગને દૂર કરવા માટેનો મંત્રઃ-/बीमारी को दूर करने के लिए मन्त्र :-

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
બાધા શાંતિ માટેનો મંત્રઃ- /आपति को दूर करने के लिए मन्त्र :-

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनासनम्।।

વિપત્તિઓના નાશ માટેનો મંત્રઃ-/आपति को दूर करने के लिए मन्त्र :-


देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।

બ્રહ્મચારી' હનુમાનજી પરણેલા હતા! 

is hanumaji married ? / hanumanji ke vivahit hone ki katha 

इस हनुमान जयंती के दिन करे उनकी अपास्ना उनकी पत्नी के साथ और पाए उनके अनेक खास लाभ

उनका जोड़ी मे मूल मंत्र "हनुमत कल्याणं" जिससे होगे आपके कष्ट दूर



સંકચ મોચન હનુમાનજીના બ્રહ્મચારી રૂપથી તો બધા પરિચિત છે. એટલા માટે જ તો તેમને બહ્મચારી કહેવામાં આવે છે પરંતુ શું તમને ક્યારેય સાંભળ્યું છે કે હનુમાનજીના લગ્ન થયા હતા અને તેમની પત્નીની સાથે એક મંદિર પણ છે! હા, આ વાત સાચી છે આ એવું મંદિર છે જેના દર્શન માટે દૂર-દૂરથી લોકો આવે છે. કહેવાય છે કે હનુમાનજી અને તેમની પત્ની સાથે દર્શન કર્યા બાદ ઘરમાં પતિ-પત્નીની વચ્ચે ચાલી રહેલા બધા જ ઝઘડાઓ દૂર થઈ જાય છે. જાણો આજે એ મંદિર વિશેની પૂરી વાત....


આમ તો દેશ-વિદેશમાં હનુમાનજીના અનેક મંદિર છે જ્યાં અનેક પ્રકારના રૂપે સંકચ મોચન પોતાના ભક્તોને દર્શન આપે છે. પરંતુ ખમ્મમ જિલ્લામાં બનેલ હનુમાનજીનું મંદિર ઘણી બધી રીતે ખાસ છે. ખાસ એટલા માટે કે અહીં હનુમાનજી પોતે બ્રહ્મચારીના રૂપે નહીં સાંસારિક ગૃહસ્થના રૂપમાં વિરાજમાન છે પોતાની પત્ની સુવર્ચલાની સાથે. હનુમાનજીના બધા ભક્તો એવું માનતા આવ્યા છે કે તેઓ બ્રહ્મચારી હતા. અને વાલ્મીકી, કમ્ભ, સહિત કોઈપણ રામાયણ અને રામચરિત માનસમાં બાલાજીએ આ રૂપનું વર્ણન મળે છે. પરંતુ પંડિતોની વાત માનીએ તો ઉત્તર રામાયણમાં લવ-કુશની કથા પછી હનુમાનજીના લગ્નનો ઉલ્લેખ આવે છે આ કારણ છે કે કોઈપણ રામાયણમાં તેનો ઉલ્લેખ નથી.



પરાશર સંહિતામાં પણ આ વાતનો ઉલ્લેખ છે. જેના આધારે પંડિતોના દાવો છે તે પ્રમાણે ભલે બધાય લોકો માનતા હોય કે માતા અંજનીના લાલ, કેસરી નંદન અને ભગવાન શ્રીરામના અનન્ય ભક્ત મહાવીર હનુમાન બાલ બ્રહ્મચારી હતા. પરંતુ તે પૂર્ણ રૂપે સત્ય નથી. હનુમાનજીએ કાયદેસરની વિધિ-વિધાનથી લગ્ન કર્યા હતા અને તેમની પત્ની પણ હતી. તેની સાબિતી છે આંધ્રપ્રદેશના ખમ્મમ જિલ્લામાં બનેલ આ ખાસ મંદિરમાં જે પ્રમાણ છે હનુમાનજી લગ્ન કરેલા હોવાનું.
આ મંદિરમાં ભગવાન બજરંગબલી પોતાની પત્ની સુવર્ચલાની સાથે વિરાજિત છે. આ મંદિર યાદ અપાવે છે કે રામદૂતના આ ચરિત્રને જ્યારે તેમને લગ્નના બંધનમાં બંધાવું પડ્યું હતું. પરંતુ તેનો અર્થ એ નથી કે ભગવાન બાલબ્રહ્મચારી ન હતા. પવનપુત્રના લગ્ન પણ થયા હતા અને તેઓ બ્રહ્મચારી પણ હતા.

કેટલીક વિશેષ પરિસ્થિતિઓ સર્જાવાને લીધે બજરંગબલીએ સુવર્ચલાની સાથે લગ્ન બંધનમાં બધાવું પડ્યુ હતું. ખમ્મમ જિલ્લામાં બનેલ આ મંદિર યાદ અપાવે છે ત્રેતા યુગની એ ઘટનાને જ્યારે હનુમાનજીએ ભગવાન સૂર્યને પોતાન ગુરુ બનાવ્યા હતા. હનુમાનજી, ઝડપથી સૂર્ય પાસેથી પોતાની શિક્ષા ગ્રહણ કરી રહ્યા હતા. સૂર્ય ક્યાંય અટકી નથી શકતા એટલા માટે હનુમાનજીએ તેમની સાથે આખો દિવસ ભગવાન સૂર્યના રથની સાથે જ ઉડવું પડતું અને ભગવાન સૂર્ય તેમને અનેક પ્રકારની વિદ્યાઓનું જ્ઞાન આપતા હતા. પરંતુ હનુમાનજીને જ્ઞાન આપતી વખતે સૂર્યની સામે એક દિવસ ધર્મસંકટ ઊભું થઈ ગયું. કુલ નવ પ્રકારની નેવિકરાણી વિદ્યામાંથી હનુમાનજીએ તેમને ગુરુના પંચવીર્યકરણ યજઅણી પાંચ પ્રકારની વિદ્યાઓ તો શીખવી દીધી પરંતુ બાકીની બચેલી ચાર વિદ્યાઓ અને જ્ઞાન એવા હતા જે માત્ર કોઈ વિવાહિતને જ શીખવી શકાતા હતા. પરંતુ હનુમાન પૂરી શિક્ષા ગ્રહણ કરવાનું પ્રણ લઈ ચૂક્યા હતા અને તેનાથી તેમને ઓછું ખપે તેમ ન હતું અર્થાત્ તેને ગ્રહણ કર્યા સિવાય છોડે તેમ ન હતા.

બીજી તરફ ભગવાન સૂર્યની સામે સંકટ એ પણ હતુ કે તેઓ ધર્મના અનુશાસનને કારણે કોઈ અવિવાહિતને કેટલીક વિશેષ વિદ્યાઓ શીખવી ન શકતા હતા. એવી સ્થિતિમાં સૂર્યએ હનુમાનજીને લગ્ન કરવાની સલાહ આપી અને પોતાના પ્રણને પૂરા કરવા માટે હનુમાનજી પણ લગ્ન સૂત્રમાં બંધાઈને શિક્ષા(અભ્યાસ) કરવા તૈયાર થઈ ગયા. પરંતુ હનુમાનજી માટે દુલ્હન કોણ બની શકે અને તેને ક્યાંથી શોધવી તેને લઈને બધા ચિંતિત હતા. એવી સ્થિતમાં સૂર્યએ જ પોતાના શિષ્ય હનુમાનજીને એક રસ્તો બતાવ્યો.

ભગવાન સૂર્યએ પોતાની પરમ તપસ્વી અને તેજસ્વી પુત્રી સુવર્ચલાએ હનુમાનજીની સાથે લગ્ન કરવા માટે તૈયાર કરી લીધી. ત્યારબાદ હનુમાનજીએ પોતાની શિક્ષા પૂર્ણ કરી અને સુવર્ચલા સદાય માટે પોતાની તપસ્યામાં પરોવાઈ ગઈ. આ પ્રકારે હનુમાનજી ભલે લગ્નના બંધનમાં બંધાઈ ગયા હોય પરંતુ શારીરિક રીતે તેઓ આજે પણ બ્રહ્મચારી જ છે પરાશર સંહિતામાં તો લખ્યું છે કે સૂર્યએ પોતે જ આ લગ્ન વિશે કહ્યું છે કે આ લગ્ન બ્રહ્માંડના કલ્યાણ માટે થયા છે અને તેનાથી હનુમાનના બ્રહ્મચર્ય ઉપર કોઈ જ અસર નથી પડી. અર્થાત્ હનુમાનજીનું બાળ બ્રહ્મચારી હોવાનું વ્રત પણ બચી ગયું.
આંધ્રપ્રદેશમાં ખમ્મમના પ્રાચીન મંદિરમાં હનુમાનજી પોતાની પત્ની સુવર્ચલાની સાથે વિરાજમાન છે. આ મંદિરમાં બંનેની સાથે-સાથે પૂજા થાય છે. સુવર્ચલા અને બજરંગબલી એવા દંપતિનું ઉદાહરણ છે જેને એકબીજાની ખુશીઓ અને કાર્યસિદ્ધિ માટે અવિસ્મરણીય ત્યાગ આપ્યો સાથે જ એકબીજા સાથે સાચા પૂરક હોવાનું સાચુ પ્રમાણ પણ આપ્યું. એટલા માટે ખમ્મમ મદિર વિશે કહેવાય છે કે અહીં જનારા વિવાહિત જોડા ઉપર હનુમાનજી અને માતા સુવર્ચલાના પરમ આશીર્વાદ વરશે છે અને તેમના દામપત્ય જીવનમાં ક્યારેય વિજ્ઞો નથી આવતા. આ કારણ છે કે દૂર દૂરથી લોકો અહીં હનુમાનજીના આ સ્વરૂપના દર્શન માટે આવે છે.

અહીં પારાશર સંહિતામાં કહેવાયું છે કે સૂર્યએ જેઠ સુદ દશમી ઉપર પોતાની પુત્રી સુવર્ચલાના લગ્નની રજૂઆત કરી. આ નક્ષત્ર ઉત્તરામાં બુધવાર હતું. જેઠ સૂદ દસમી હનુમાન લગ્ન વિશે "हनुमत कल्याणं" પણ પણ લખવામાં આવ્યું છે.
ખમ્મમમાં બનેલ આ મંદિરને સિંગરેની ખાનના શાસકોએ બનાવ્યું હતું. લોકો પૂછે છે કે હનુમાનજીની પાસે કોણ છે તો અમે બતાવીએ છીએ કે તે સૂર્યની પુત્રી છે. જેના હનુમાનજીનીસાથે લગ્ન થયા છે. આ બંનેના લગ્નની કથા પુરાણોમાં પણ મળે છે. મંદિરને બનાવવા પાછળ ખાસ મકસદ પણ છે અને તે આવનાર લોકોના દામપત્યજીવનના બધા દુઃખ દૂર કરે છે. આ કારણ છે કે પ્રાચીન માન્યતાવાળા આ મંદિરમાં ઘણા લોકો આવે છે. હનુમાનજીના આ સ્વરૂપના દર્શન કરવા. ભગવાન સૂર્યએ આ બંનેના લગ્ન જગતના કલ્યાણ માટે કરાવ્યા હતા.


गोमती चक्र से जुड़े उपाये जो करेंगे दु:खों को दूर
(benifite of gomti kakra / gomti kakra ke prayog)

                 आप सभी को मेरा नमस्कार! आज मे आपके लिए कुश उपाय लेके आया हू जो की सायद आपके काम मे आएगी एशी कामना के साथ आज मे आपको गोमती चक्र के बारे मे जानकारी दूँगा!
                   इस धरती पर प्रकृति ने जो कुछ भी उत्पन्न किया है, वह बेवजह नहीं है, बल्कि उसका कहीं न कहीं उपयोग अवश्य है। हम सभी लोग जिन वस्तुओं के गुणों से परिचित है, उनका अधिक से अधिक अपने जीवन में प्रयोग करके लाभ प्राप्त करते है। लेकिन बहुत सी ऐसे वस्तुएं भी जिनके बारे में अज्ञान हैं। आज हम आपको कुछ ऐसी दुर्लभ वस्तुओं के बारे में बतायेंगे जिन्हें आप-अपने जीवन में उपयोग करके अनेक प्रकार की समस्याओं से निजात पाकर सुखद एंव समृद्धिदायक जीवन व्यतीत कर सकेंगे। हम बात कर रहे हैं गोमती चक्र की, जो आपके जीवन के सारे दुखों को दूर खुशियों से भर सकता है। 

                   यह गोमती नदीं में पाया जाने वाला अल्पमोली कैल्शियम व पत्थर मिश्रित होते है। इनके एक तरफ उठी हुयी सतह होती है, और दूसरी तरफ कुछ चक्र होते है। इन चक्रों को लक्ष्मी जी का प्रतीक माना जाता है। गोमती चक्रों का निम्न प्रकार से प्रयोग करके आप-अपनी समस्याओं का निदान कर सकते है! 

 1- यदि किसी व्यक्ति या बच्चे को बार-बार नजर लग जाती है, तो वह किसी निर्जन स्थान पर जाकर 3 गोमती चक्रों को अपने उपर से 7 बार उतार कर अपने पीछे फेंक दें और पीछे मुड़कर न देंखे। इस क्रिया को करने से कभी नजर दोष नहीं होगा। 

 2- यदि आपको निरन्तर आर्थिक हानि उठानी पड़ रही है, तो प्रथम सोमवार को 11 अभिमंत्रित गोमती चक्रों का हल्दी से तिलक करें और शंकर जी का ध्यान कर पीले कपड़ें में बांधकर पूरे घर में घुमाकर किसी बहते हुये जल में प्रवाहित करें। इसे करने से कुछ समय पश्चात ही लाभ मिलेगा।

 3- यदि कोई बच्चा शीघ्र ही डर जाता है, तो प्रथम मंगलवार को अभिमंत्रित गोमती चक्र पर हनुमान जी के दाॅये कन्धें का सिन्दूर से तिलक कर किसी लाल कपड़े में बांधकर बच्चे के गले में पहना दें। बच्चे का डरना समाप्त हो जायेगा। 

4- यदि आपके व्यवसाय में किसी की नजर लग जाती है, तो 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र और तीन छोटे नारियल को पूजा करने के बाद पीले वस्त्र में बाॅधकर मुख्यद्वार पर लटका दें। इसके बाद आपके व्यवसाय में कभी नजर नहीं लगेगी। 

5- यदि आपके हाथों से खर्च अधिक होता है, तो प्रथम शुक्रवार को 11 अभिमंत्रित गोमती चक्रों को पीले कपड़े पर रखकर मां लक्ष्मी का स्मरण कर विधिवत पूजन करें। दूसरे दिन उनमें से 4 गोमती चक्र उठाकर घर के चारों कोनों में एक-2 दबा दें और 3 गोमती चक्र को लाल वस्त्र में बांधकर धन रखने के स्थान पर रख दें तथा 3 चक्रों को पूजा स्थल में रख्रें दे। शेष बचें एक चक्र को किसी मन्दिर में अपनी समस्या निवेदन के साथ भगवान को अर्पित कर दें। यह प्रयोग करने से कुछ समय में लाभ दिखने लगेगा।

६ - यदि आपकी कुंडली मे नाग-दोष या कालसर्प दोष हे तो इसकी पूजा करने से और उसे धारण करने से आपको 
    लाभ प्राप्त हो सकता हे ! 

७ - ११ गोमती चक्र को मकान बनाते समय उसके पाए मे इनकी स्थापना करने से मकान का वास्तु दोस पूर्ण होता हे

८ - ६ गोमती चक्र को काले कपड़े मे बंद करके दुश्मन का नाम लेके बहते पानी मे प्रवाहित करने से उसने रक्षण 
     प्राप्त होगो

९ - गोमती चक्र को पानी मे रखने के बाद उसका सेवन करने से पेट के रोगो मे और बी पी मे राहत मिलती हे 

आज एक अच्छी और सच्ची कॉसिश आपकी परेसानी को कम करने की कोशिश की हे पर अन्द-श्रधा से नही 
पर पूरे विश्वास से इनका प्रयोग करना! भगवान आपकी मनोकामना पूरी करे!

आपका हिमांशु पुरोहित - अहमदाबाद - गुजरात

 રુદ્રાક્ષ-ચમત્કારી ફાયદા!

(types of rudraksh / rudraksh ke prakar evamhetu )


આપ સર્વે ને મારા નમસ્કાર અને ચરળ સ્પર્શ 

સૌથી પહેલા તો આપ સર્વે થી  ક્ષમા માગુ છુ કે હૂ વ્યસ્ત હોવાના હિસાબે ગણા દીવસ થી આપના માટે કઇ
નવુ લાવી ના શક્યો પણ હૂ આજે શિવ ભગવાન ના દિવસે આપ સર્વે માટે આપની સમસ્યા માટે શિવ ના રુદ્રાક્ષ થી તેના નિરાકરાળ લાવ્યો છુ. અને તેવી આશા રાખુ છુ કે આપ સર્વે ને તેના થી કઈક ફાયદો થશે.


એક મુખી રુદ્રાક્ષઃ- આ રુદ્રાક્ષ સૂર્યનું પ્રતીક છે. ધ્યાન, યોગ કરનારા, પ્રગતિ પ્રાપ્ત કરનારા લોકો માટે ખૂબ જ ફળદાયી છે. સૂર્યના દુષ્પ્રભાવોને દૂર કરવા માટે તે પહેરી શકાય છે. આ રુદ્રાક્ષ યશ અને કિર્તી અપાવે છે.

-બે મુખી રુદ્રાક્ષઃ- આ રુદ્રાક્ષ અર્ધનારીશ્વરનું પ્રતીક છે. સ્ત્રી-પુરુષના સંબંધોમાં આત્મીયતા લાવે છે. પારિવારિક સુખ અપાવે છે અને ચદ્રાના દુષ્પ્રભાવોને દૂર કરે છે.

ત્રણ મુખી રુદ્રાક્ષઃ- નિર્ભયતા અને સાહસનું તત્વ વ્યક્તિત્વમાં લાવે છે. તેને પહેરવાથી હીન ભાવનાઓથી મુક્તિ મળે છે, કોઈપણ મંગળદોષ હોય તો તેમાં પણ મદદરૂપ થાય છે. સારા સ્વાસ્થ માટે પણ સારું, જૂના પાપોનું પણ શમન કરે છે.

ચાર મુખી રુદ્રાક્ષઃ- વિદ્યાર્થીઓ માટે સર્વશ્રેષ્ઠ. બુદ્ધિમાં વિકાસ અને સ્મરણશક્તિ તંદુરસ્ત કરે છે. વૈજ્ઞાનિક કલાકારો અને લેખકોએ તેને ધારણ કરવાથી ખૂબ જ લાભ થાય છે. માનસિક રોગમાં સહાયક અને બુધના દોષોને દૂર કરે છે.

પંચમુખીઃ તે પ્રકૃતિમાં સૌથી વધુ જોવા મળે છે. તેના સ્વામી ગુરુ છે. માનસિક સ્વાસ્થ સારું રાખવાની સાથે જ અકાળ મૃત્યુથી બચાવે છે. જપ-તપમાં સૌથી વધુ તેનો પ્રયોગ આ રુદ્રાક્ષનો કરવામાં આવે છે.

છ મુખી રુદ્રાક્ષઃ- છ મુખી રુદ્રાક્ષ, વિદ્યા તથા જ્ઞાનનું પ્રદાતા માનવામાં આવે છે. તે બાળકોમાં ધ્યાન અને હોશિયારી વધારે છે. તે માનસિક કાર્ય કરનારા લોકો માટે ખૂબ જ સારું માનવામાં આવે છે, જેમ કે શિક્ષક વર્ગ, વેપારી, પત્રકાર, લેખક, સંપાદક, આરુદ્રાક્ષનું સંચાલક ગ્રહ શુક્ર છે.

સાત મુખીઃ- જો તમે પોતાના ધનને વધારવા માગતા હોવ તો તેને પહેરો. તે શનિદોષને શાંત કરે છે. જો તમને વાત વ્યાધિ, જોડોનું દર્દ સંબંધી પરેશાનીઓ હોય, તો પણ તે કારગર રહે છે. આ રુદ્રાક્ષને રોકડા રૂપિયાની પેટીમાં રાખવામાં આવે છે.

આઠ મુખી રુદ્રાક્ષઃ- ગણેશજીની કૃપાવાળુ આ રુદ્રાક્ષ કોઈપણ પ્રકારના નવા કામ માટે સારું રહે છે. તે રાહુના દુષ્પ્રભાવો સામે રક્ષા કરે છે. ફેફસા સાથે સંબંધિત વિકાર, ત્વચા રોગ, કાળસર્પ દોષ અને ઈર્ષાના દુષ્પ્રભાવોથી મુક્ત કરે છે. 

નવ મુખીઃ- તેને પહેરવાથી આત્મબળ વધે છે. સહનશક્તિ, શૌર્ય અને સાહક વધે છે. નામ અને યશ ચારેય તરફ ફેલાય છે. ભક્તિ ભાવ વધે છે. પેટસંબંધી રોગ અને શારીરિક પીડાને દૂર કરે છે. કાળસર્પના દોષને દૂર કરવામાં સહાયક છે.


દસ મુખી રુદ્રાક્ષઃ- તે ગ્રહ નવગ્રહ શાંતિ માટે સારું છે. વાસ્તુદોષ તથા વ્યક્તિની કુંડળીમાં સ્થિત બધા દોષોનું નિવારણ આ ગ્રહથી કરી શકાય છે. તે પહેરવાથી ખરાબ નજર, જાદુ ટોણાથી બચી શકાય છે. ઉચ્ચ પદાધિકારીઓ તથા ઉદ્યોગપતિઓ માટે લાભદાયી છે.

અગિયાર મુખીઃ- હનુમાનજીની શક્તિનું પ્રતીક છે આ રુદ્રાક્ષ. વ્યક્તિમાં બળ અને સાહસ વધારે છે. વ્યક્તિમાં વાકકુશળતા તથા આત્મવિશ્વાસને વધારીને પ્રસિદ્ધિ અપાવે છે. બધા પ્રકારના ભયથી મુક્તિ અપાવે છે.

14 મુખીઃ- આ રુદ્રાત્રના નિયંત્રક દેવતા ઈન્દ્ર, વિષ્ણુ અને કામદેવ માનવામાં આવે છે. તેને ધારણકરવાથી ઐશ્વર્ય અને ધનની પ્રાપ્તિ થાય છે. તેને પહેરવાથી પ્રમોશન ઝડપથી મળે છે. તે મુકી રુદ્રાક્ષ વ્યકક્તિની દરેક પ્રકારની કામનાને પૂરી કરે છે. આ રુદ્રાક્ષ યૌન શક્તિનું પ્રદાતા છે.

15 મુખીઃ- તે આત્મજ્ઞાન, યોગસાધના, ધ્યાન તથા ધનસંપદા અપાવે છે, તેમાં 14 મુખી રુદ્રાત્રોના તમામ ગુણ સામેલ હોય છે. ધન, સંપત્તિ તથા યશનો અતિરક્ત લાભ છે.

16 મુખીઃ- વિજય અને કીર્તી અપાવનાર આ રુદ્રાક્ષ દુશ્મનો, ચોરી તથા અપહરણકર્તાઓથી બચાવે છે. ભગવાન શ્રીરામની કૃપાથી ઓતપ્રોત આ રુદ્રાક્ષ અત્યંત શક્તિશાળી છે. દુશ્મનો ઉપર વિજય મેળવવા માટે આ શ્રેષ્ઠ છે. પ્રિયજનો સાથે બિછડી જવાનો ભય અને લગ્ન પહેલાની ચિંતાઓને દૂર કરે છે.

17 મુખીઃ- તેને વિશ્વકર્મા રુદ્રાક્ષ કહે છે. તે દુર્લભતાથી મળે છે. તેને પહેરવાથી અચાનક ધન-સંપત્તિ મળવાના યોગ બને છે. આ રુદ્રાક્ષ માત્ર લકી લોકોને જ મળે છે. જે લોકો નવા ઉદ્યોગો કે નિર્માણમાં જવા માગે છે તેમની માટે તે અતિ ઉત્તમ છે.

18 મુખીઃ- તેને ભૂમિ રુદ્રાક્ષ પણ કહે છે. તેને પહેરવાથી કોઈ નવું કામ, નવો પ્રોજેક્ટ, નવું કાર્ય તથા મોટા પ્રોજેક્ટ મળે છે. તે સ્ત્રીઓને પ્રસવ પહેલા પ્રજનન દોષોથી બચાવે છે. બાળકોના અનેક પ્રકારના રોગોથી રક્ષણ કરે છે.

19 મુખી રુદ્રાક્ષઃ- આ નારાયણ રુદ્રાક્ષ કહેવાય છે. વેપાર, રાજનીતિ અને નેતૃત્વના ગુણો વધારે છે. બધા પ્રકારના ભય અને તણાવને દૂર કરે છે. કોઈપણ સારું કામ કરતી વખતે તેને પહેરવાથી લાભ મળે છે. દુશ્મનોની કુદ્રષ્ટિ અને ઈર્ષાથી પણ રક્ષણ કરે છે.

20 મુખી રુદ્રાક્ષઃ- તે બ્રહ્મા રુદ્રાક્ષ છે.તે માનસિક શાંતિ માટે જરૂરી છે. તર્ક શક્તિ, સંભાષણ, વાદ વિવાદ માટે તે પહેરવું જોઈએ. આ રુદ્રાક્ષ ખૂબ જ મુશ્કેલીઓ પછી પ્રાપ્ત થાય છે. જો કોઈને પણ તે મળી જાય તો ખૂબ જ સન્માનની સાથે પહેરવું જોઈએ.

21 મુખીઃ- તે કુબેર રુદ્રાક્ષના નામથી ઓળખાય છે. વિશ્વનું એવું કોઈ સુખ નથી જે આ રુદ્રાક્ષ પહેર્યા પછી ન મળે. તે પહેરનારને પૂર્ણ વિજેતા કહેવાય છે. આ રુદ્રાક્ષને પહેરવાથી બધી ઋણાત્મકતા દૂર થઈ જાય છે. તેને પહેરવાથી બધી ભૌતિક વસ્તુઓ પ્રાપ્ત થઈ જાય છે.



                                          હૂ આશા રાખુ છુ કે આપ સર્વે નૅ મારો આ સામાન્ય પ્રયાસ ગમશે અને તેવી આશા રાખુ છુ કે આપ સર્વે ના મને આના પ્રતેય કોઈ સલાહ-સૂચન હોય તો આપ સર્વે ને ટી આપવા વિનંતી


હર હર મહાદેવ સાથે આપનો  - હિમાંશુ ડી પુરોહિત - અમદાવાદ



आप सभी सामाजिक बंदू को मेरा प्रणाम!


श्राध्र पक्ष - पितृ की आराधना का समय 

श्राध्र भार्द्र पक्ष (क्वार पक्ष) की पूनम से सुरू होता हे और भार्द्र पक्ष (क्वार पक्ष) की अमास को पूर्ण होता हे!
 ये पूरे १६ दीनो तक चलने वाला पर्व हे. जिसमे हम हमारे पितृ (पूर्वज) की आराधना करते हे! एसा माना जाता हे की इस समय चद्रमा पृथ्वी के बहोत करीब होता हे इसीलिए ये भी मानाजाता हे की इनदीनो मे किया जाने वाला पितृ तर्पण सीधा उनको पहुचता हे!


इनदीनो मे पितृ के लिए मन से किए जाने वाला तर्पण या दान को श्राध्र कहा जाता हे. इनदीनो मे हमे हमारे पितृ की तृप्ति के लिए कर्म करते हे! इन कार्मो मे श्राध्र निकलना (यानी कागवास) , पिंड दान करना , ब्रम्‍ह भोजन करना , भूखो को खाना खिलाना इत्यादि.


मनुस्मृति , महाभारत , मत्श्यपुराण , स्कंदपुराण के अनुसार हमे कागवास हो सके उतनी सुबे निकलना चाहिए! साय काल मे कागवास निकालना अनुचित माना गया हे क्यू की इनदीनो मे इस काल को रक्षशी माना जाता हे. और साथ ही हमे इन पुरोणो ने कागवास निकाल ने के कूछ नियम भी बताए हे!

कागवाश निकालने ने से पूर्व कूछ बातो को हमे नही करना चाहिए जेसेकि कपड़े धोना , हजामत करना , किसी को दान देना , क्न्या एवं बडो का अपमान करना , क्रोधित होना इत्यादि और कागवाश निकालने के लिए ये बताया हे की हमे पूरी पर खीर रख साथ ही थोड़ा पानी कौए के लिए रख ना चाहिए. हमे ये भी बताया गया हे की पुरुष के कागवास को पुरूष फल के पत्तो पे रखने से और स्त्री के कागवास को स्त्री फल के पत्तो पे रखने से उन मे रहे दोष का नाश होता ये और अंत मे हमे हमारी ग़लती यो की उनसे क्षमा याचना करनी चाहिए! 

यही पुराण हमे ये बताते हे की यदि इनकार्यो से हमारे पितृ तृप्त होते हे तो वो हमे तन-मन-धन से शांति प्रदान करते हे और वे हमारा रक्षण करते हे! 

पर यहा मेरे दिल मे एक प्रश्न उठ ता हे की हम हमारे मा-बाप को कई बार दुखी करते हे. यहा तक की कई लोग तो अपने मा-बाप की जिंदगी को जीते जी ही नर्क बना देते हे! क्या हम एसा कर के उनके मरने के बाद कागवश या फिर दान-धर्म करके उनको तृप्त कर सकते हे और वो हमे माफ़ कर सकते हे ? इस पर ज़रा गोर कीजिएगा! 

सायद इस वजे से ही किसी ने ये कहा हे की:-  ज़िंदे बाप को कभी ना पूछा : मरे बाद पूजवाया !  
मेने तो सोचा, आप भी सोचे 


आपका हिमांशु पुरोहित - अहमदाबाद - गुजरात


बेटी या बेटा ?




              हमारी इस प्यारी दुनिया मे सभी चीज़-वास्तु चाहे वो सजीव हो या नही पर उन सबका एक अपना विशेष महत्व हे. जेसे की हवा-पानी, अनाज-सबाज़ी, इंशान  यहा तक जानवर का भी अपना महत्व हे. उस दुनिया बना ने वाले ने हर चीज़ अपने हिसाब से बिल्कुल सही बना या हे.
                 


                                                                        हमारे जीवन को जीने के लिए समाज का भी एक महत्व हे. जीश ने हमे जीवन जीने का सही रास्ता दिखाया हे. जिशने हमे ये भी सिखाया हे की हमे अपने आस पास रहेने वालो का और हर रिस्तो-नातो का हमे सम्मान करना चाहिए. पर हम क्या एसा कर रहे हे ?

                                                                         उपर वाले ने जीवन आगे बड़ाने के लिए सबसे प्यारी रचना की हे  जिसे हम "मा" के नाम से जानते हे. मा ही एक एसी रचना हे जो जीवन को आगे बड़ा सकती हे. पर आज हम उस उपर वाले द्वारा लिए जाने वाले निर्णय मे दखल देने लगे हे. यानी की जो इस दुनिया मे अभी आया भी नही उस अ जन्मे जीव से भी भेद भाव करते हे. यानी लड़के और लड़की का भेद. हमे हमरे आस पास मा, बीवी चाहिए पर बेटी नही एसा क्यू ?

                                                                         हम इतना क्यू नही सोच ते की दुनिया मे अगर लड़की आएगी नही तो हमारा जीवन के से आगे बड़े गा ? और ये भी तो सोचो की जिस लड़के को आप इतना प्यार करते हे क्या बिना किसी लड़की के सहारे उसका या फिर आप का वंश आगे बाडेगा ? शाश्र्तो मे भी कहा गया हे की लड़की के अपमान से हमे भगवान का आशीरवाद भी प्राप्त नही होता.

वंश-वंश करते मानव तुम
वंश बेल को काट रहे हो
एक फल की चाहत में तुम
पूरा बाग उजाड़ रहे हो

फूल रहे ना धरती पर तो
फल तुम कैसे पाओगे ?
अंश काटकर अपना तुम
कैसे वंश बढ़ाओगे ?

उम्र की ढ़लती शाम में जब
बेटा खड़ा ना होगा साथ
याद करोगे अंश को अपने
खुद मारा जिसको अपने हाथ

ना कुचलों नन्ही कलियों को
उनको भी जग में आने दो
बनकर फूल खिलेंगी एक दिन
जीवन उनको पाने दो.

                                                                                                     आपका
                                                                                                      हिमांशु पुरोहित - अहमदाबाद - गुजरात



Guru Purnima : A day to worship for Guru


गुरु पूर्णिमा यानी हिंदू और बुद्दिस्तस का एक महत्व पूर्ण त्योहार हे! गुरु पूर्णिमा पूनम के दिन आषाड मास मे आती हे! जो की समस्त गुरवो के पूजा का एक विवेश दिन माना गया हे! जो अपने मनुष की और सामाजिक कार्यो मे उनो ने जो योग्य  योगदान और हमे मार्गदर्शन दिया हे उसके मान मे ये विशिट दिन को उनका सम्मान कर उनका आभार प्रगट किया जाता हे!


गुरु का अर्थ समज ने के लिए उनके इस नाम का अर्थ समज ना ज़रूरी हे! गुरु दो सबदो से बना हे जो की इस प्रकार हे "गु"+"रु"! संकृत मे "गु" का अर्थ होता हे की अंधकार (darkness) और "रु" का अर्थ हे से मुक्क्त कर मे वाला (remover) !  जिसका सयुक्क्त अर्थ होगा की हमे अज्ञानता रूपी अंधकार से मुक्क्त करने वाला !

इसी लिए सायद हमारे साश्त्रो मे गुरु को इस्स्वर माना गया हे ! जिसका प्रमाण इस श्लोक के दवारा मिलेगा

“गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर, 
गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:”


अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है. गुरु ही साक्षात परब्रह्म है. ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं.

इस का एक और उदाहरन हमे हमारे साश्त्रो से मिले गा की अपने गुरु द्रोना के एक बार कहेने पर ही एकलव्या ने अपनेहाथ का अंगूठा काट डाला जबकि वो जनता था की उसके ये कर ने के बाद वो जीवन मे कभी भी बान नही चला पाएगा!

हमे भी हमारे सामाजिक गुरु श्री हारित ऋषि का इस दिन सम्मान ज़रूर करना च्चाईए! वे हमारे समाज के गुरु हे ज़िनोने हमे और हमारे समाज को आयुर्वेद से जीवन भर निरोगी रहे ने का मार्गदर्शन बताया! इस लिए मे तहे दिल से उनका सुकारगुजार हू और ज़िंदगी भर रहूँगा! और हमारे समाज के सभी बंधु से ये द्वर्खस्त करता हू की आप सब भी उनका सम्मान करे!

गुरु केवल साधु या संत नही होते हमे ज्ञान देने वाले हमारे मा-बाप, सामाजिक बड़े बुगुर्ग और सामाजिक नेता जो हमारे और हमारे समाज के भले के लिए कार्य करते हे वो सभी हमारे गुरु के समान हे और हमे उनका सम्मान केवल गुरु पूर्णिमा के दिन ही नही हर रोज, और हर पल कर ना चाहिए और इनके द्वारा दिए गये निर्देसो का पालन करना चाहिए जीशशे हमे और हमारे समाज का भला ही होता हे और एसा माना जाता हे की एशी जगा ही भगवान बस्ते हे!



आपका 
हिमांशु पुरोहित - बसवाड़ा- अहमदाबाद(गुजरात)
dt. 28/07/2013 




हमारे समाज मे लोकशाही 

                   लोकशाही एक पदति हे! जिसमे समाज बंदू को अपने को मिले कीमती मत अधिकार का उपयोग कर के अपने और समाज के प्रमुख का चयन करने की आज़ादी हे ! इस से समाज बंधु को अपना महत्व का पता लगता हे! समाज के प्रमुख और अधिकारी सामाजिक विकास के लिए अपने चुने जाने पर गर्व करते हे और अपनी सामाजिक जवाबदारी एक मुश्कान के साथ उठा ते है! और इस प्रक्रिया के बाद समाज शांति अनुभवता है की उसके द्वारा चयन कीये गये सामाजिक नेता उनके लिए और उनके समाज के विकास हेतु कार्यशील रहेंगे! इस महत्व की वजा से ही शायद इतिहास मे हमने कई बार राजा के खिलाफ बग़ावत देखी है और देख भी रहे हे और शायद आगे भी देखेंगे!      


                     लोकशाही एक एशी पदति जहा पर अनुभवी लोग अपने साथ हम युवा पेडी को लेके चलते हे! ताकि हम युवा लोग उनके अनुभव से कुश अच्छी बाते शिख अपने आप को भविष्य मे आने वाली नयी चुनोती का सामना कर ने के लिए अपने आपको क्षक्ष्म कर पाए ! और दूसरी तरफ अनुभवी लोग युवा पीडी के साथ रहे कर नयी तकनीक का उपयोग करना शिख पाती हे ! यहा पर दोनो के मिलन से कुश एसा हो सकता हे की जिसकी सायद कल्पना करना भी मिश्किल हो! इस पर संतुलन पाने वाला समाज दूसरे विभिं समजो से कई आगे निकल ने की क्षमता पता हे जिसका प्रयोग वो अपने और सामाजिक बंधु के विकास के लिए करते हे!


                     आज मूज़े गर्व हे की मे एक एसे समाज का हिस्सा हू जहा पर लोकशाही को मान और सम्मान दिया जाता हे! पर साथी मे मूज़े ये खेद भी हे की हमे यानि की हम युवा पेडी को हर बार की तरहा इस बार भी नज़र अंदाज़ किया गया! हमे तो ठीक था पर हमारे समाज मे अभी भी नई तकनीक के प्रयोगो को भी हर बार की तरहा इस बार भी नज़र अंदाज़ किया गया!(जेसे की एलेक्ट्रॉनिक मीडीया जेसे फ़ेसबुक, मैल, स.म.स के उपयोग ना करना)! क्या हमे हमारे सामाजिक विकास के लिए इन सब चीज़ो जा उपोग नही करना चाईए?

                      आजके दिन समाज मे हुए शांति पूर्वक ही चुनाव प्रक्रिया के लिए समाज के सभी बंदू का मे  आभारी हू ! और ये आसा करता हू की हमे आपका साथ एसे ही भविष्य मे प्राप्त होता रहे!


                                                                                             आपका,
                                                                     हिमांशु दुर्गेशजी पुरोहित - अहमदाबाद(गुजरात)  
dt. 21/07/2013               

2 comments:

  1. nice thought sir keep going

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  2. hame nahi pata tha ki tum inta bhahetar likh bhi shakte ho

    age badte raho aur koi jarurat ho to bilkul bolna

    rajendra chandel
    ajay engineering

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